काली घटा

                   
ये ज़ुल्फ जो बेताब है छूने को तेरे रुखसार
मत बांधो इन्हें और फैल जाने दो कांधों पर 
ये चाहतों की वो लहरें हैं जो लहराकर 
समेट लेती हैं ख्वाबों के आगोश  में
झूमती, उमड़ती काली घटाओं की मानिंद 
छा जाती है मेरे वजूद पर चारों ओर
और उस पल ........
मैं यूंही ताकता रह जाता हूं जब 
बारिश की बूंदें मोतियों सरीखी गिरती हैं 
तेरे चेहरे पर फिसलती हुई तेरी जुल्फों से 
तो कर दो इन्हें मुक्त और विचरने दो बेखौफ
मेरे चेहरे पर, मेरी हसरतों पर और
मेरे एहसास पर.......

 _   pujapuja 


 

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