मितवा
जिस पल तुम मीत से मितवा हुए हम खुद ही खुद से अगवा हो गए पथरीले रास्ते खुशबुओं से भर गए रीते नैनों के दामन सपनों से संवर गए होठों पर मुस्कुराहटें खिलखिलाने लगीं हँसी भी अब थोड़ा चुलबुलाने लगी ना जाने कब तुम जहाँ हो गए जिस पल तुम मीत से मितवा हुए हम खुद ही खुद से अगवा हो गए बारिश की बूंदें शबनम सी हुईं दर्पण की नजरें भी चंचल सी हुईं खुद की छुअन चौंकाने लगी पायल भी कुछ ओर धुन गाने लगी जाने कैसे सुर सभी सधे हो गए जिस पल तुम मीत से मितवा हुए हम खुद ही खुद से अगवा हो गए चैन हाथ झटककर चलता बना नींद का संग भी अब दुर्लभ बना चांद तारों से मन बतियाने लगा कभी गाने कभी सकपकाने लगा बस यूं ही सबसे कतराने लगे हम अपने से ही शरमाने लगे जाने कब अपने से बेगाने हो गए जिस पल तुम मीत से मितवा हुए हम खुद ही खुद से अगवा हो गए © Puja Puja