चलो बंद बंद खेलते हैं
सलीके के मुखौटों के पीछे दम घुटने लगा है तहज़ीब के कपड़ों में बदन अकड़ने लगा है भलमनसाहत का बोझ असह्य होने लगा है सदाचार भी कदम कदम पर ठिठकने लगा है अच्छाई की बोरियत से बाहर निकलते हैं चलो बंद बंद खेलते हैं....... कुछ बेमतलब नारे लिखने होंगे कुछ बैनर, झंडे पकड़ने होंगे जी भर गला फाड़ चिल्लायेंगे छलनी सड़कों को और छलनी करते जायेंगे दुकानों को लूटेंगें, कुछ तोड़ फोड़ भी करेंगे रेल की पटरियों पर जोर आजमाएंगे आते जाते वाहनों की होली जलायेंगे, होली के रंगों से मन भर गया है अब लाल रंग से जीवन को रोमांचक बनायेंगें अच्छाई की बोरियत से बाहर निकलते हैं चलो बंद बंद खेलते हैं....... मुद्दों का क्या है, एक ढूंढो हज़ार मिलेंगे अब खेतों में फसलें नहीं होतीं जनाब फार्महाउसों में मुद्दें उपजते हैं एक बार नजर घुमाइये, मुद्दे ही मुद्दे लहलहाते दिखेंगे धर्म, जाति, आरक्षण, वेतन फिल्में, समारोह, साहित्य और चिंतन जानवर, बाबा, नेता और संत या फिर माफिया और मजनूओं का अंत जिस पर भी मन हो मुद्दा उठा लेते हैं अच्छाई की बोरियत से बाहर निकलते हैं चलो बंद बंद खेलते हैं....... अरे जनाब ! परिणाम की म