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Showing posts from March, 2018

विश्वास

काँच के टुकड़ों की महीन किरकिरी सा आंखों में चुभता विश्वास हृदय पटल पर गर्म लावे सा उबलता विश्वास सुर्ख नम होंठों पर रक्त बूंदों सा दहकता विश्वास टूटी सांसों को आस की सांस देता विश्वास बैचेनी को थपकी देकर सुलाता विश्वास अपनों में परायों के होने का अहसास कराता विश्वास कभी अंधकार के गर्त में गिराता विश्वास कभी अंगुली थाम उजाले की ओर ले जाता विश्वास सागर सा गहरा गगन सा विशाल अगले ही पल क्षण भंगुर सा होता विश्वास जो टूटे को जोड़ दे और जुड़े को पल में तोड़ दे ऐसी दोधारी तलवार सा धारदार विश्वास कभी विश्वास में होता था विश्व का वास आज--- विश्वास में हो रहा विष का वास अपनी ही परछाईं यहां तोड़ रही विश्वास गर्व होता था हमें खुद के विश्वास पर अब खुद ही ढो रहे हैं विश्वास की लाश  ।। ©Puja Puja

तनहाई

ना जाने कब और कैसे यूंही तन्हा तन्हाई में , तन्हाइयों से बतियाते तन्हाइयां भली सी लगने लगीं चिड़ियों की मीठी चहचहाहट से कभी गुनगुना उठता था मन मेरा अब शोर सी कानों को चुभने लगी और तन्हाइयां भली सी लगने लगीं रंगीन ख्वाबों से सराबोर आंखें नित नए सपनों की तलाश में जो रात का पीछा किया करती थीं अब रातों से खुद ही पीछा छुड़ाने सी लगी और तन्हाइयां भली सी लगने लगीं आईने के बोल दिल में गुरुर भरते थे कभी तेरे इश्क़ से हम सजते संवरते थे कभी अब अक्स खुद के ही डराने लगे इश्क की बात से ही घबराने लगे उदास शामें मन को भाने सी लगीं और तन्हाइयां भली सी लगने लगीं पतझड़ के मौसम लुभाने लगे अश्क आंखों से यारी निभाने लगे चांदनी भी अंगार बरसाने लगी अब तेरी आहट भी बेगानी सी लगने लगी और तन्हाइयां भली सी लगने लगी ना जाने कब और कैसे यूंही तन्हा तन्हाई में, तन्हाइयों से बतियाते तन्हाइयां भली सी लगने लगी..... © Puja Puja