रिश्ते
घावों से रिसते दर्द की तरह रिश्ते भी रिसने लगे हैं जिंदगी के पोर पोर से चेहरे पे नए चेहरे नजर आने लगे हैं मिथ्या की परतों में रिश्ते धुंधलाने लगे हैं । रिश्तों के मायने अब कुछ के कुछ हो गए हम नहीं अब मम, अहम परम ब्रह्म हो गए धन,दर्प की आंच में रिश्ते भी भस्म हो गए । कंधो को अपनों का हाथ महसूस नहीं होता राहों पे अपनों के कदमों का साथ नहीं होता। नजरें भी अजनबियत से भरी हो गई दिलों की मिठास भी कसैली सी हो गई । गर्म हवा के थपेड़ों से रिश्ते झुलसाने लगे हैं डर के छालों से दिलों में दंश चुभोने लगे हैं जितना भी थामो रेत से फिसले जाते हैं रिश्ते छलावा से पल पल छलते जाते हैं रिश्ते रिसते हुए रिश्तों को थामने की नाकाम सी पुरजोर कोशिशों से व्यथित जिंदगी रिसती ही जा रही है अपने ही हाथों से।। __ Pujapuja