मातृ दिवस
आज मातृ दिवस है माँ
आज तेरा महिमा मंडन होगा
कहीं श्रद्धा पुष्प चढ़ेंगे, कहीं वंदन होगा
आज कई पन्ने रंगे जाएंगे
कई गीत और कथानक रचे जाएंगे
शब्दों के आवरण से तेरा गुणगान होगा
पर ----
क्या किसी को तेरे मर्म की पीड़ा का भान होगा ?
जब तू निसार कर अपना लाल हज़ार आंसू पीती है
अपनी जायी की पीड़ा पर मन ही मन कलपती है
और टुकड़ा - टुकड़ा मरती है जब
अपनों से बिसराई जाती है
अपनों से ठुकराई जाती है
उस विकल वेदना को सहकर मां तू मुस्काये जाती है
भूल के सब दोनों हाथों से आशीष लुटाये जाती है
विपदा आती जब अपनों पर तू खुद पर झेले जाती है
औकात नहीं मेरे शब्दों की जो तेरा बखान करें
बस इतना चाहूँ मां ! तुझसे जगमग मेरा जहान रहे ।।
© Puja Puja
वाह. निशब्द हूँ. कटु सत्य, सटीक कटाक्ष पूजा जी. आपकी लेखनी को नमन.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सुधा जी
Deleteलेखनी सार्थक हुई
यथार्थ और सटीक रचना।
ReplyDeleteबस यूं ही जीवन भर खुद जायों की पीड़ा लेकर जीती है
पुरे जीवन आंखों का अथाह सागर पीती है
और एक दिन का तूझे ताज पहनाते कैसी जगत की रीती है
स्नेहसिक्त आभार प्रिय सखी
Deleteसटीक और कड़वे सत्य का उदबोधन पूजा जी अक्षरशः सत्य उजागर किया ..नमन
ReplyDeleteहृदय से आभार इंदिरा जी
Deleteआपके शब्दों से उत्साह बढ़ाया है
सटीक और सत्य वचन सब कह डाला पूजा जी आपने इतने ही शब्दों में सम्पूर्णसार धर दिया अद्भुत लेखन शुभकामनाएँ
ReplyDeleteसुप्रिया जी, रचना की सार्थकता को आपकी सराहना से बल मिला है
Deleteबहुत बहुत आभार