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इस बार

इस बार भी हम दिवाली मनायेंगे नए कलेवर से घर को सजाएंगे रंगीन बल्बों की झालरें लगाएंगे मुंडेरों पर दीप जगमगाएंगे हर्षित मन होंगे, उल्लसित चेहरे होंगे उत्सव मनाने के विकल्प बहुतेरे होंगे फुलझड़ी, पटाखों का शोर होगा हंसी -ठहाकों से घर -आंगन गूंजेगा वस्त्रों गहनों की भरमार होगी सुस्वादु व्यंजनों की बहार होगी लक्ष्मी पूजन होगा, गणेश वंदन होगा मित्रों -रिश्तेदारों का अभिनंदन होगा दिवाली की धमाचौकड़ी में सब मशगूल होंगे पर कहीं कुछ सपने, कुछ चेहरे गमगीन होंगे कोई आंगन मायूस होगा, कोई खिड़की उदास होगी कहीं किसी चौखट के बाहर आस पड़ी हताश होगी लक्ष्मी किसी कोने में मुंह छुपाए बैठी होगी नन्हें गणेशों की हुलसती नजरें रोशन अट्टालिकाओं को तकती होंगी तो क्यों ना इस बार दिवाली ऐसे मनाएं एक नन्हा दिया किसी अंधेरी दहलीज पर जलाएं सुने आंगन में कुछ आशाएं भर दें उदास खिड़की पर उजाले की लड़ी टांक दें हुलसती आंखों में खुशी के मोती सजा दें खाली दामन में हंसी की फुलझडियां भर दें एक नन्हा सा दिया जला दें इस बार ----- __ Pujapuja 

हिंदी दिवस

चलो आओ सब मिलकर हिंदी दिवस मनाते हैं कोने में उपेक्षित पड़ी हिंदी को ताज पहनाते हैं क्या फर्क पड़ता है जो वर्ष भर हम अपनी अंग्रेजियत पर गर्व से इठलाते हैं हिंदी मातृ भाषा है सोच अफसोस जताते हैं पर आज हिंदी दिवस हैं तो सोचा कुछ पन्ने कोरे कागज के हिंदी के लिए भर देते हैं हिंदी मात्र एक भाषा नहीं एक संस्कृति है ज्ञान-पीपासुओं हेतु ज्ञान का अतुल्य सागर है  काव्य का अलंकार है अगर तो संग ही भावनाओं का सुंदर, सारगर्भित दर्पण है श्रृंगार का आलोक तो वीरों की तलवार भी है  आक्रोश की धार तो प्रीत का मल्हार भी है  जनाधार का आधार है तो एकता की आवाज़ भी है हमारी भाषा हिंदी बेशक आज यह एक दिवस बन गई है  बेशक जबान अंग्रेजी में फर्राटेदार हो गई है बेशक आज किसी के लिए हीन हो गई है पर आज भी अपनेपन के अहसास से भरी है  और जन - जन के रोम रोम में जिंदा है हिंदी ----- पूजापूजा 

रिश्ते

घावों से रिसते दर्द की तरह रिश्ते भी  रिसने लगे हैं जिंदगी के पोर पोर से चेहरे पे नए चेहरे नजर आने लगे हैं मिथ्या की परतों में रिश्ते धुंधलाने लगे हैं । रिश्तों के मायने अब कुछ के कुछ हो गए  हम नहीं अब मम, अहम परम ब्रह्म हो गए धन,दर्प की आंच में रिश्ते भी भस्म हो गए । कंधो को अपनों का हाथ महसूस नहीं होता राहों पे अपनों के कदमों का साथ नहीं होता। नजरें भी अजनबियत से भरी हो गई दिलों की मिठास भी कसैली सी हो गई । गर्म हवा के थपेड़ों से रिश्ते झुलसाने लगे हैं डर के छालों से दिलों में दंश चुभोने लगे हैं जितना भी थामो रेत से फिसले जाते हैं रिश्ते छलावा से पल पल छलते जाते हैं रिश्ते रिसते हुए रिश्तों को थामने की नाकाम सी  पुरजोर कोशिशों से व्यथित जिंदगी रिसती ही जा रही है अपने ही हाथों से।। __ Pujapuja 

नन्हीं तितली

तितली ही तो हूं नन्हीं, निर्मल और थोड़ी निर्बल सी उड़ती फिरती यहां वहां उत्साहित मन , प्रसन्नचित सी फूल फूल और कली कली मधुकुंड से मधुकण पीती सी  उपवन के गलियारों में  अठखेलियां करती सी तितली ही तो हूं नन्हीं, निर्मल और थोड़ी निर्बल सी तुम निरखते थे उड़ना मेरा प्रसन्न मन, स्नेहसिक्त होकर सहलाते थे पंख मेरे हर्षित, हुलसित हो _होकर अचरज में भर भर जाते  जब छप जाते रंग मेरे  तुम्हारी अंगुलियों के पोरों पर तितली ही तो हूं नन्हीं, निर्मल और थोड़ी निर्बल सी पर आज ___ विस्मित हूं और थोड़ी भयभीत भी क्यों चुभने लगी हैं नजरें तुम्हारी मेरी बेफिक्र उड़ान पर डरी हूं और थोड़ी सहमी भी क्यों जकड़ने लगी हैं अंगुलियां तुम्हारी मेरे रंगीन पंखों पर मायूस हूं और घबराई सी क्यों कुटिलता बसने लगी है तुम्हारी मुस्कुराहटों पर तितली ही तो हूं नन्हीं, निर्मल और थोड़ी निर्बल सी और लो ___ धूल से अटी पड़ी हूं क्षत _विक्षत हो कर रंग तुमने पंखों से नोच लिए  अर्ध _विक्षिप्त हो कर टुकड़े टुकड़े बिखर गए रंगीन पंख मेरे पैरों तले कुचल गए ख़्वाब सुनहरे मेरे क्यों उड़ान तुमसे मेरी देखी न गई क्यों हंसी मेरी तुमसे झेली न गई क्य

समय

समय गुजरता रहा बेआवाज़ अपनी रफ़्तार से मैं अपनी रफ़्तार तेज और तेज करती रही चाहा था इक बार मुड़कर वो देखे मुझे पर वो चुपचाप अपनी चाल चलता गया  मैंने की कोशिशें अनथक उसे हराने की पर वो सहज ही मुझे हराता चला गया मैंने हवा से गति मांगी और अश्वों से रफ़्तार पर वो मुझसे कहीं आगे और आगे चला गया  सूर्यकिरण की थी सवारी और कल्पनाओं के पंख पर वो सरल चाल से दूर निकलता चला गया मन की गति को भला वो क्या हराएगा मेरी सोच को भी वो मुंह चिढ़ाता चला गया मैं नासमझ ना समझ पाई यह बात अभी तक  समय ना रुका है , ना रुकेगा किसी भी पल समय ना किसी का है, ना होगा किसी पल यह चक्र है जो बस चलता ही रहेगा  चलाता ही रहेगा...... बस चलता ही रहेगा..... __ pujapuja 

याद

चांद की बिंदिया माथे पर लगाए किरणों के गहने तन पर सजाए तारों की चूनर मुख पर ढलकाए रात सी कौंध गई तेरी याद जेहन में। धवल चांदनी की पायल पग में रुनझुन घुंघरू जुगनुओं के श्वेत कुमुदिनी सी सुगंधित, सुवासित  रात सी कौंध गई तेरी याद जेहन में। चकवी के मीठे कुंजन जैसी झरने की बूंदों सी निश्छल बहती बयार की सरगम जैसी रात सी कौंध गई तेरी याद जेहन में। ओस में भीगा मधुरम यौवन सिमटी, सकुचाती, अकुलाई पलछिन मदहोश, नशीली और नखराली सी रात सी कौंध गई तेरी याद जेहन में।। __  pujapuja 

काली घटा

                    ये ज़ुल्फ जो बेताब है छूने को तेरे रुखसार मत बांधो इन्हें और फैल जाने दो कांधों पर  ये चाहतों की वो लहरें हैं जो लहराकर  समेट लेती हैं ख्वाबों के आगोश  में झूमती, उमड़ती काली घटाओं की मानिंद  छा जाती है मेरे वजूद पर चारों ओर और उस पल ........ मैं यूंही ताकता रह जाता हूं जब  बारिश की बूंदें मोतियों सरीखी गिरती हैं  तेरे चेहरे पर फिसलती हुई तेरी जुल्फों से  तो कर दो इन्हें मुक्त और विचरने दो बेखौफ मेरे चेहरे पर, मेरी हसरतों पर और मेरे एहसास पर.......  _   pujapuja