नन्हीं तितली
तितली ही तो हूं
नन्हीं, निर्मल और थोड़ी निर्बल सी
उड़ती फिरती यहां वहां
उत्साहित मन , प्रसन्नचित सी
फूल फूल और कली कली
मधुकुंड से मधुकण पीती सी
उपवन के गलियारों में
अठखेलियां करती सी
तितली ही तो हूं
नन्हीं, निर्मल और थोड़ी निर्बल सी
तुम निरखते थे उड़ना मेरा
प्रसन्न मन, स्नेहसिक्त होकर
सहलाते थे पंख मेरे
हर्षित, हुलसित हो _होकर
अचरज में भर भर जाते
जब छप जाते रंग मेरे
तुम्हारी अंगुलियों के पोरों पर
तितली ही तो हूं
नन्हीं, निर्मल और थोड़ी निर्बल सी
पर आज ___
विस्मित हूं और थोड़ी भयभीत भी
क्यों चुभने लगी हैं नजरें तुम्हारी
मेरी बेफिक्र उड़ान पर
डरी हूं और थोड़ी सहमी भी
क्यों जकड़ने लगी हैं अंगुलियां तुम्हारी
मेरे रंगीन पंखों पर
मायूस हूं और घबराई सी
क्यों कुटिलता बसने लगी है
तुम्हारी मुस्कुराहटों पर
तितली ही तो हूं
नन्हीं, निर्मल और थोड़ी निर्बल सी
और लो ___
धूल से अटी पड़ी हूं
क्षत _विक्षत हो कर
रंग तुमने पंखों से नोच लिए
अर्ध _विक्षिप्त हो कर
टुकड़े टुकड़े बिखर गए
रंगीन पंख मेरे
पैरों तले कुचल गए
ख़्वाब सुनहरे मेरे
क्यों उड़ान तुमसे मेरी देखी न गई
क्यों हंसी मेरी तुमसे झेली न गई
क्यों रंग मेरे तुमसे सहन न हुए
क्यों स्वप्न मेरे तुमसे वहन न हुए
आखिर __
तितली ही तो थी
नन्हीं, निर्मल और निर्बल सी
__ puja puja
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