समय

समय गुजरता रहा बेआवाज़ अपनी रफ़्तार से
मैं अपनी रफ़्तार तेज और तेज करती रही
चाहा था इक बार मुड़कर वो देखे मुझे
पर वो चुपचाप अपनी चाल चलता गया 
मैंने की कोशिशें अनथक उसे हराने की
पर वो सहज ही मुझे हराता चला गया
मैंने हवा से गति मांगी और अश्वों से रफ़्तार
पर वो मुझसे कहीं आगे और आगे चला गया 
सूर्यकिरण की थी सवारी और कल्पनाओं के पंख
पर वो सरल चाल से दूर निकलता चला गया
मन की गति को भला वो क्या हराएगा
मेरी सोच को भी वो मुंह चिढ़ाता चला गया
मैं नासमझ ना समझ पाई यह बात अभी तक 
समय ना रुका है , ना रुकेगा किसी भी पल
समय ना किसी का है, ना होगा किसी पल
यह चक्र है जो बस चलता ही रहेगा 
चलाता ही रहेगा......
बस चलता ही रहेगा.....
__ pujapuja 


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