हिंदी दिवस
चलो आओ सब मिलकर हिंदी दिवस मनाते हैं
कोने में उपेक्षित पड़ी हिंदी को ताज पहनाते हैं
क्या फर्क पड़ता है जो वर्ष भर हम अपनी
अंग्रेजियत पर गर्व से इठलाते हैं
हिंदी मातृ भाषा है सोच अफसोस जताते हैं
पर आज हिंदी दिवस हैं तो सोचा कुछ पन्ने
कोरे कागज के हिंदी के लिए भर देते हैं
हिंदी मात्र एक भाषा नहीं एक संस्कृति है
ज्ञान-पीपासुओं हेतु ज्ञान का अतुल्य सागर है
काव्य का अलंकार है अगर तो संग ही
भावनाओं का सुंदर, सारगर्भित दर्पण है
श्रृंगार का आलोक तो वीरों की तलवार भी है
आक्रोश की धार तो प्रीत का मल्हार भी है
जनाधार का आधार है तो एकता की
आवाज़ भी है हमारी भाषा हिंदी
बेशक आज यह एक दिवस बन गई है
बेशक जबान अंग्रेजी में फर्राटेदार हो गई है
बेशक आज किसी के लिए हीन हो गई है
पर आज भी अपनेपन के अहसास से भरी है
और जन - जन के रोम रोम में जिंदा है हिंदी
----- पूजापूजा
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