आँसू

आँसू की तो नियति ही है
बहना....बहते ही जाना
मौसम-बेमौसम
मौका-बेमौका ।।

तानों के तंज हों या रिश्तों के रंज हों
हृदय की कोमल दीवारों पर
अपनों के दंश हों
भर उठते हैं नयन, रुकते ही नहीं जरा
और बह जाते हैं आँसू ।।

प्रेम-पगी एक मीठी नजर
सराहना की थपकी सी भर
बोझिल काँधों पर किसी अपने का हाथ
सूनी राहों में चंद कदमों का साथ
भावनाओं के बांध टूट ही जाते हैं
रुकते ही नहीं जरा
और बह जाते हैं आँसू
कभी बूंद - बूंद , तो कभी बेहिसाब

कभी नादान बन बहते हैं
कभी छलावा बन छलकते हैं
कभी शुद्ध मोतियों से चमकते हुए
कभी खून के कतरों से दहकते हुए
कब मुस्कुराते हैं, कब रो पड़ते हैं
खुशी से भीगे हैं या दुख में डूबे हैं
मर्म आँसू का समझ ही नहीं पाया कोई
भेद इनका गहरा जान ही नहीं पाया कोई

इन्हें तो बहना...बहते ही जाना है
मौसम-बेमौसम
मौका-बेमौका ।।

© Puja puja
27/5/2019

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